कभी समझ लेते जुबान ख़ामोशी की ...
कभी चीखे भी नहीं सुन पाता इन्सान ...
कभी न्याय की खातिर लड़ता ...
कभी न्याय की खातिर लड़ता ...
कभी देख अन्याय बन जाता अनजान ...
कभी विरुद्ध भ्रटाचार नारे लगाये ...
कभी रिश्वत से अपने काम करवाता ..
कभी समझ लेते जुबान ख़ामोशी की ...
कभी चीखे भी नहीं सुन पाता इन्सान ...
-AC
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