सूरज आग उगल रहा था ...
धरती के सीने पर दरारे थी ...
उस किसान की आँखों में हज़ार सवाल थे ...
कही इस बार उसकी बारी तो नहीं ...
घर गिरवी रखकर जो क़र्ज़ उठाया था,
कही वो उसे बेघर ही ना कर दे ...
जैसे तैसे बिना घर के तो गुजारा हो जायेगा ,
मगर बिना बारिस के आनाज कैसे होगा ...
बिन रोटी के गुजारा कैसे होगा ???
और दूसरी तरफ गर्मियों की छुट्टिया ...
इस बार खूब मस्ती करेगे खूब मौज उडायेगे ...
वाटर पार्क में अपने बच्चो को ले जाता वो अमिर इन्सान ...
पानी की ठंडी बोछार ...पीने को मिनरल वाटर ...
ना खाने की चिंता ना पानी की फिकर ...
खूब पानी में खेलो खूब मज़े उडाओ ...
जितना चाहों उतना पानी बहाओ ...
और उधर गर्मी में पीने के पानी को तरसते लोग ...
कभी मिलों दूर से पीने का पानी लाते ....
कभी एक बाल्टी पानी को मिलों लाइन लगाते ...
पानी रे पानी तेरा रंग कैसा ......
छोटी सी बात एक बड़ा सवाल ...
"रहिमन पानी राखिये, बिन पानी सब सून ...
पानी गये ना उबरे, मोती मानस चून ..."
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