कभी सूरज आग उगले ....
धरती के सिने में पड़े दरारे ...
बूंद बूंद को इंसान तरसे ...
कभी जमके पानी बरशे ...
उफानो पर हो जाये नदिया ...
ले जाये बहा के सारी खुशिया ....
क्या प्रकृति का है ये रौद्र रूप ...
या इंसान की है कोई भूल ...
शक्ति परीक्षण है ये कैसा ?....
कैसा प्रकृति और इन्सान का ये द्वन्द ...
घटते जंगल कटते पहाड़ ....
प्रकृति से ये छेड - छाड़ ...
है विकास या है विनाश ....
-AC
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