कोशिश .....An Effort by Ankush Chauhan
पत्रकार की हत्या पर " मातम या जश्न"
आज एक पत्रकार की हत्या सुर्ख़ियो में है। ऐसा नही के देश मे पहली बार किसी पत्रकार की हत्या हुई हो। मगर फिर भी कुछ लोग जश्न मना रहे है और कुछ मातम।
अजीब स्तिथि है किसी की मौत पर जश्न वो भी सिर्फ इसलिये के वो आपकी विचार धारा के विरोधी है। बड़े दुख और शर्म की बात है साथ ही जो लोग आज मातम मना रहे है वो भी इतने भले नही क्योकि आज से पहले दूसरी विचारधारा के लोगो की हत्या पर वो मौन थे। तब कहाँ थी उनकी सवेधनशीलता और उनकी सभ्यता । क्या वो आज सिर्फ ढोंग नही कर रहे इंसानियत का।
वैसे तो सुनकर भी अजीब लगता है कि पत्रकार भी अब एक विचारधारा के समर्थक और विरोधी हो गये। जब निष्पक्षता ही नही बची तो वो पत्रकारिता कहाँ की? पत्रकारिता के नाम पर ज्यादातर तो धंदा ही कर रहे है कोई किसी नेता की तो कोई किसी नेता की दलाली।
कुछ पत्रकार है जो आज भी सच को सामने रखने का काम करते है मगर शायद वो बहुत कम ही होंगे।
खैर वो अपने आकाओं के हुक्म की तामील कर रहे है।उन्हें करने देते है जब तक उनका ज़मीर न जागे।
मगर जश्न मनाने वालो को एक बार सोचना चाहिए के भगवान राम ने भी रावण के मौत पर जश्न नही मनाया था उन्होंने भी संवेदना ही व्यक्त की थी। और मातम मनाने वालों को भी सोचना होगा के क्या किसी की हत्या का मुद्दा भी इस आधार पर बनेगा के वो किस विचारधारा से है क्या आपकी नजर में खून के रंग भी अलग होते है क्या?
दोनों ही पक्षो को अपने गिरेबान में झांकने की जरूरत है कि अपने राजनीतिक फायदे और नुकसान के कारण हम देश को किस दिशा में ले जा रहे है। सबसे बड़ी बात इंसानियत को कहा ले जा रहे है। क्योंकि बिना इंसानियत के तुम इंसान ही कैसे रहोगे।
मगर मैं जानता हूं एक आम इंसान की ये छोटी सी बात इन बुद्धिजीवियों की समझ मे कहाँ आएगी वो तो बड़ी बात को समझते है।
खैर आयने का काम है हकीकत दिखाना, अब आप पर है के चेहरे को साफ करोगे या जमाने को दोष दोगे।
-AC
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें