कोशिश .....An Effort by Ankush Chauhan
Arunachalam Muruganantham, the first man to wear a sanitary pad. Padman
अरुणाचलम मुरुगनाथं , पहला आदमी जिसने सैनिटरी पैड पहना । और कहलाया पैडमैन
हा दोस्तो आपने अक्षय कुमार की आने वाली फिल्म पैडमैन के बारे में तो सुना होगा जो 26 जनवरी को सिनेमाघरों में आ जायेगी। मगर क्या आप जानते है ये फ़िल्म सच्ची कहानी पर आधारित है ..ये कहानी है। हमारे देश के एक सामाजिक उधोगपति अरुणाचलम मुरुगनाथं जी की।
ये पहले आदमी है जिन्होंने सैनिटरी पैड को पहना । लोगो ने इन्हें पागल कहा मगर आज इनके पास पदमश्री पुरस्कार है और इनकी कहानी पर फ़िल्म बन चुकी है। इन्हें 14 साल की उम्र में पढ़ाई छोड़नी पड़ी। इन्होंने खेतो में मजदूरी की और फिर ये इंसान 2014 में टाइम मैगजीन में छप गया। 2016 में इन्हें पदमश्री मिला।
Arunachalam Muruganantham, the first man to wear a sanitary pad. Padman
अरुणाचलम मुरुगनाथं , पहला आदमी जिसने सैनिटरी पैड पहना । और कहलाया पैडमैन
हा दोस्तो आपने अक्षय कुमार की आने वाली फिल्म पैडमैन के बारे में तो सुना होगा जो 26 जनवरी को सिनेमाघरों में आ जायेगी। मगर क्या आप जानते है ये फ़िल्म सच्ची कहानी पर आधारित है ..ये कहानी है। हमारे देश के एक सामाजिक उधोगपति अरुणाचलम मुरुगनाथं जी की।
ये पहले आदमी है जिन्होंने सैनिटरी पैड को पहना । लोगो ने इन्हें पागल कहा मगर आज इनके पास पदमश्री पुरस्कार है और इनकी कहानी पर फ़िल्म बन चुकी है। इन्हें 14 साल की उम्र में पढ़ाई छोड़नी पड़ी। इन्होंने खेतो में मजदूरी की और फिर ये इंसान 2014 में टाइम मैगजीन में छप गया। 2016 में इन्हें पदमश्री मिला।
आओ जानते है इनकी कहानी एक कहानी सच्चे हीरो की जिन्होंने भारत मे छुआछूत की तरह माने जाने वाले महिलाओ के पीरियड की तकलीफ को समझा और गाँव की गरीब महिलाओ के लिये सैनिटरी पैड बना कर लिख दिया इतिहास में अपना नाम, अरुणाचलम मुरुगनाथं का जन्म 1962 में तमिलनाडु के कोयम्बटूर में हुआ। मुरुगनाथं का बचपन गरीबी में बिता । इनके पिता का एक रोड एक्सीडेंट में देहांत हो गया था। इनकी माता ने खेतो में मजदूरी कर इन्हें पढ़ाने का प्रयास किया। मगर 14 साल की उम्र में इनकी पढ़ाई छूट गयी और घर का खर्च चलाने के लिए इन्होंने भी खेतो में मजदूरी, वेल्डर, और मशीन ऑपरेटर जैसे कामो को किया। 1998 में इनकी शादी शांति से हुई। एक दिन मुरुगनाथं ने देखा कि उनकी पत्नी पुराने कपड़े और रद्दी अखबार इकट्ठा कर रही है अपनी माहवारी के समय इस्तमाल करने के लिये। क्योकि बड़ी कंपनियों द्वारा बनाये जाने वाले पैड बहुत महंगे थे और गाँव के गरीब लडकिया और महिलायें उन्हें खरीदने में सक्षम नही थी। इस बात ने उन्हें बेचैन कर दिया उन्हें महिलाओ की तकलीफ का अहसास हुआ उन्होंने देखा के कैसे मज़बूरी में वो असुरक्षित तरीको का इस्तमाल कर रही है और उन्होंने सस्ते पैड बनाने का प्रयोग शुरू किया। उन्होंने रुई से पैड बनाये जिन्हें उन्होंने अपनी पत्नी और बहन को दिये । उन्होंने इन्हें रिजेक्ट कर दिया और उनके प्रयोग का हिस्सा बनने से मना कर दिया। क्योंकि भारतीय समाज मे पीरियड को एक अलग नजर से देखा जाता है और इसके बारे में महिलाये ज्यादा खुल कर बात नही कर पाती। उन्होंने महिला वोलियंटर्स की खोज की जो उनकी खोज को इस्तेमाल कर उन्हें रिजल्ट बात सके मगर कोई तैयार नही हुआ।
मगर इस सबसे मुरुगनाथं ने हार नही मानी उन्होंने खुद पर इसका इस्तेमाल करने का फैसला लिया। मगर एक आदमी को पीरियड कैसे।? तो उन्होंने जानवरो के खून से भरा एक ब्लैडर इस्तमाल किया । और अपनी खोज पूरी होने के बाद इन्होंने अपने प्रोडक्ट को लोकल मेडिकल कॉलेज की लड़कियों में फ्री में बांटा और कहा कि यूज़ करने के बाद ये उन्हें वापस लौटा दे। अपने प्रयोग के दो साल बाद उन्हें पता लगा के कमर्शियल पैड सेलुलोस का इस्तेमाल करते है और यही फाइबर पैड को शोखने में मदद करता है। मगर अब दूसरी समस्या उनके सामने थी। पैड बनाने की मशीन की कीमत 35 मिलियन थी । तब उन्होंने एक कम कीमत की मशीन का निर्माण किया । और उन्होंने जो मशीन बनाई उसकी कीमत थी मात्र 65000 रुपय।
2006 में मुरुगनाथं ने IIT मद्रास में अपनी खोज को दिखाया । उन्होंने उनकी खोज को National Innovation Foundation के grassroot technological award के लिये नामित किया और इन्होंने वो अवार्ड जीत भी लिया। उन्हें कुछ पैसा मिला और उन्होंने Jayaasree industries की स्थापना की जो आज इन मशीनों को रूरल एरिया में महिलाओं को देती है और स्वयं सहायता समूह को मशीन देकर कार्ये किया जाता है।
कई बड़े उधोगपतियो ने इनसे इस मशीन को लेने के आफर किये मगर इन्होंने बेचने से माना कर दिया और गांव में समूहों में देते रहे । उनके इस सामाजिक कार्ये के लिये इन्हें कई पुरस्कार भी मिले। आज इनकी खोज से गाँव देहात के इलाकों में कई महिलाओं को रोजगार और आय प्राप्त हो रही। उनकी इस समाज सेवा के लिये उन्हें पदमश्री से भी नवाजा जा चुका है। और आज मुरुगनाथं देश के जाने माने social entrepreneur है ये कई बड़े इंस्टीयूट में लेक्चर दे चुके है जिनमे IIT , IIM के साथ हावर्ड भी शामिल है।
और अब उनकी इस कहानी को अक्षय कुमार की आने वाली फिल्म Padman के रूप में दिखाया जाएगा।
समाज की एक समस्या को देख कर उसके समाधान के उनके जज्बे और लगन को आज पूरा देश सलाम कर रहा है।
2006 में मुरुगनाथं ने IIT मद्रास में अपनी खोज को दिखाया । उन्होंने उनकी खोज को National Innovation Foundation के grassroot technological award के लिये नामित किया और इन्होंने वो अवार्ड जीत भी लिया। उन्हें कुछ पैसा मिला और उन्होंने Jayaasree industries की स्थापना की जो आज इन मशीनों को रूरल एरिया में महिलाओं को देती है और स्वयं सहायता समूह को मशीन देकर कार्ये किया जाता है।
कई बड़े उधोगपतियो ने इनसे इस मशीन को लेने के आफर किये मगर इन्होंने बेचने से माना कर दिया और गांव में समूहों में देते रहे । उनके इस सामाजिक कार्ये के लिये इन्हें कई पुरस्कार भी मिले। आज इनकी खोज से गाँव देहात के इलाकों में कई महिलाओं को रोजगार और आय प्राप्त हो रही। उनकी इस समाज सेवा के लिये उन्हें पदमश्री से भी नवाजा जा चुका है। और आज मुरुगनाथं देश के जाने माने social entrepreneur है ये कई बड़े इंस्टीयूट में लेक्चर दे चुके है जिनमे IIT , IIM के साथ हावर्ड भी शामिल है।
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अगर उनकी कहानी प्रेरणादायक लगे तो शेयर जरूर करे।
-AC
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Pixie for her brings eco friendly sanitary products which are good for health as well as for environment.
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