किसान के लिए लड़ कौन रहा है किसान तो बस मोहरा है इस रजनीतिक लड़ाई का और पीसना भी उसी को है इस लड़ाई में
ना तो सरकार ने कानून बनाने से पहले किसान के हर हित का सोचा, ना आज उसकी लड़ाई लड़ने का ढोंग करने वाले सोच रहे है।
कानून में खामिया है वो तो सविधान में भी थी उसे तो हमने रद्द नही किया समय समय पर जरूरत के हिसाब से उसमे संशोधन किये। अगर ये नेता भी किसान के सच्चे हितेषी होते तो ये इस बात पर चर्चा करते के कानून में क्या होना चाहिये या क्या नही होना चाहिये जो कमियां है उस पर बात करते , मगर मकसद तो बस राजनीतिक रोटियां है।
और इन राजनीतिक गिद्दों का मंडराना भी दिखा रहा है के ये माहौल खराब कर अपनी रोटियां सेंकने के लिए मंडरा रहे हैं।
आज अगर कानून ज्यो का त्यों रहता है या रद्द हो जाता है दोनों परिस्थितियों में नुकसान तो किसान का ही है। वो किसान जिसका घर ही खेती से चलता है खेती जिसकी रोजी रोटी है।
उनका क्या बिगड़ेगा जिनकी रोटी उनकी राजनीति की दुकान से आती है।
इससे बड़े दुर्भाग्यपूर्ण बात यह है के लोगो मुद्दों का विरोध और समर्थन भी ये देखकर करते है के कौनसी पार्टी पक्ष में है कौन इसके विपक्ष में। लोगो को मुद्दों से कोई मतलब नही , सिर्फ अपने नेताओं की गुलामी करनी है। गुलामी का स्तर ये है के एक किसान को आतंकवादी कहने से और गालिया देने से भी नही चूक रहा और दूसरा मुद्दों से भटके एक राजनीतिक आंदोलन का समर्थन कर रहा है क्योंकि दोनों के आकाओ का यही आदेश है।
और किसानों के नाम पर छिड़ी इस जंग में पीस किसान रहा है।मगर क्या फर्क पड़ता है वो तो सदियों से ये झेलता आया है वो तो हर साल अपनी फसल को लेकर मंडियों के चक्कर लगाता है और बिचौलियों की मिन्नते करता है, वो तो हर साल अपने गन्ने के पेमेंट का इंतजार करता है, वो बिचौलियों द्वारा उसकी पर्ची कटवा देने पर उसी को अपना गन्ना आधा पौन दाम में देकर आता है। वो अनाज की लागत भी वसूल न होने पर भी उसे बेचने पर मजबूर होता है और फिर भूख से लड़ता अगली फसल का इंतजार करता है। वो कभी चिलमिलती धूप में पसीना बहता है तो कभी कड़कती सर्दी में आधी रात खेत मे बारी का इंतजार कर पानी देकर आता है।
वो देखता है उन राजनेताओं को जो उसके नाम पर राजनीति करते है और महलो में रहकर शकुन की जिंदगी बिताते हैं।
और वो दिन रात एक करके भी रूखी सुखी खाकर मुश्किल से अपने बच्चो को पढ़ाता और अपने घर को पक्का कर पाता है।
डॉक्टर अपने बच्चे को डॉक्टर बनाना चाहता है, नेता बच्चे को नेता , अभिनेता बच्चे को अभिनेता, किसान नेता के बच्चे किसान नेता बनते है पर जिस किसान के इस देश मे इतने चर्चे है वो नही चाहता के उसके बच्चे किसान बने ।
क्योकि उसका दर्द ना तों कोई देख सकता है ना ही कोई समझ सकता है,
जय जवान जय किसान का नारा भी सिर्फ भाषणों तक ही सीमित है क्योंकि किसान को ना तो वो सुविधा मिलती है ना ही सम्मान।
खेत मे काम करते सिर्फ उसके हाथों की रेखाये ही नही मिटती उसकी किस्मत की रेखाये भी मिट जाती है। उसके पैरों की दरारे कब सूखती जमीन से भी गहरी हो जाती है वो खुद भी समझ नही पता।
और आज जब वो देश की इन परिस्थितियों को देखता होगा तो सोचता तो होगा क्यो ये लड़ाई सिर्फ उसके नाम पर है उसके लिये नही?
-AC
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