आज पूरे विश्व में लोग योग के विषय में जानते है ये तो सच है मगर कितना ? क्या कभी सोचा है के योग वास्तव में है क्या ? क्या योग सिर्फ शरीरिक व्यायाम है लचीलापन प्राप्त करना ही योग का उद्देश्य है?
मुझसे किसी ने पूछा आप कितना घंटे योगा करते है?
मुझे बड़ा अचरज हुआ कोई योग का जानकार ऐसा सवाल तो नही पूछ सकता
मित्रो योग दिन के कुछ घंटों के लिए की जाने वाली कोई क्रिया नही है ये तो एक जीवन पद्दति है जिसे आपको अपने जीवन मे अपनाना पड़ता है।हमेशा याद रखना
"योग किया नही जाता, योग जिया जाता है ।"
योग जीवन शैली है जिसे जीवन मे अपनाओगे जीवन को योगमय बनाओगे तभी योग के असली आनंद को प्राप्त कर पाओगे।
योग सिर्फ शरीर को प्रभावित करने वाली क्रिया नही ये तो आत्मा तक पर अपना प्रभाव डालती है अगर हम इसे सही अर्थों में समझ सके और इसे अपने जीवन मे सही रूप में अपनाये तो ये जीवन को परिवर्तित कर सकता है। परन्तु आज हम योग को जिस रूप में देख रहे है उसमें केवल शारीरिक व्यायाम जिन्हें योग की भाषा मे आसन कहा जाता है वही तक सीमित हो गया है।
लोग सिर्फ आसनों के प्रदर्शन में ही अपना सारा ध्यान लगा देते है । जबकि
"योग प्रदर्शन का नही, दर्शन का विषय है"
जब तक आप इसे सही अर्थों में नही समझ पाएंगे योग को सही रूप में नही अपना पाएंगे और न ही इसका पूर्ण लाभ अपने जीवन मे पा सकेंगे।
ऐसा नही है शारीरिक व्यायाम से कोई लाभ नही , इसके भी अपने लाभ है परंतु वो लाभ सिर्फ शरीर तक ही सीमित है , आसन हमारे शरीर को दृढ़ता प्रदान करते है , शरीर को मजबूत करते है तो वही साथ ही जब इनके साथ प्राणायाम को भी किया जाता है तो हमे मानसिक शांति भी प्राप्त होता है। शरीर और मन दोनों व्यादि से मुक्त होते है और स्वास्थ्य को प्राप्त करते है ।
परन्तु योग इससे कही ज्यादा प्रदान करता है अगर हम इसे सही रूप में अपनाये। ये आपके शरीर को स्वस्थ बनाने के साथ जीवन को भी आनंद और सुख से भर देता है ये सुख शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक हर प्रकार का होता है।
योग लोक परलोक सभी को सुधारने वाला अद्भुत विज्ञान है।
विज्ञान इसलिए क्योंकि अगर किसी परिणाम को किसी निश्चित विधि द्वारा हर बार प्राप्त किया जा सके तो वो विज्ञान ही होता है।
अगर आप एक ज्ञानी गुरु के मार्गदर्शन में योग को सही रूप में करे तो शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक निश्चित ही प्राप्त होते है। और जिसे हर सुख प्राप्त हो उसे और क्या चाहिये।
योग को समझने के लिए इसके प्रमाणिक ग्रंथो का अध्ययन करना चाहिय और योग का सबसे प्रमाणिक ग्रंथ है
"पंतजलि योग सूत्र"
पतंजलि योग सूत्र में योग की अवस्था को प्राप्त करने के मार्ग का पूर्ण वर्णन मिलता है
उसके अनुसार सदाहरण मानव के लिए योग का जो मार्ग बताया गया है वो है अष्टांग योग का मार्ग , अष्टांग योग के आठ अंगों में से सबसे प्रारंभिक है
यम- अहिंसा, सत्य , अस्तेय, ब्रह्मचर्ये, अपरिग्रह
नियम- शौच, संतोष, तप, स्वाध्याय, ईश्वरप्राणिधान
फिर उसके बाद आते है आसन, प्रणायाम, प्रतियहार, धारणा, ध्यान , समाधि।
इनमे सत्य और संतोष दो ऐसे विषय है जो आज के समाज मे मिलना सबसे कठिन है, लोग अपने छोटे छोटे स्वार्थों को सिद्ध करने के लिए झूठ बोलने में तनिक भी संकोच नही करते
और दुनिया मे फैले विभिन्न भोग विलास को देखकर वो संतोष को खो देते है। और फिर तलास करते है सच्चे सुख और आंनद की वो नही जानते के वो जिन मोह माया के बंधनों में सुख की तलाश कर रहे ही वो सभी भौतिक संसाधन सिर्फ दुःख के ही दे सकते है।
सांसारिक संसाधनों का उपयोग सिर्फ जीवन यापन तक ही सीमित होना चाहिये इसे अधिक नही ।
और जीवन मे सदैव सत्य के पालन का प्रयास करना चाहिय अपने निजी स्वार्थों के लिए इस महाव्रत को कभी नही तोड़ना चाहिय तभी हम योग को सही मायनों में ग्रहण कर सकते है।
और अपने जीवन को योगमय बना सकते है।
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