अहमदाबाद में न सिर्फ देश बल्कि दुनिया का सबसे बड़ा स्टेडियम बना, मगर ये अपने नाम की वजह से विवादों में आ गया है क्योंकि इस सबसे बड़े क्रिकेट स्टेडियम का नाम नरेंद्र मोदी स्टेडियम रखा गया है। इसे अब तक सरदार पटेल स्टेडियम या मोटेरा स्टेडियम के नाम से जाना जाता था। इसे पीएम मोदी का ड्रीम प्रोजेक्ट बताया जा रहा है जिस कारण इसका नाम पीएम मोदी के नाम पर नरेंद्र मोदी स्टेडियम रखा गया है। इस तरह किसी पीएम का अपने ही नाम पर किसी देश की धरोहर का नाम रख लेना कहा तक सही है कहा तक गलत ये तो हम नही कह सकते वैसा ऐसा पहली बार तो नही हुआ हमारे देश मे तो पीएम पहले भी अपने नाम पर चौक का नाम या खुद को भारत रत्न भी देने का काम कर चुके है
लेकिन सिर्फ विवाद यही तक नही इसमें विवाद का एक और कारण इसमें बने दो पवेलियन का नाम देश के दो बड़े उधोगपति के नाम पर रखना भी है लेकिन ये भी कोई नई बात नही। खैर छोड़िये वो सब अलग मामले है हम इन विवादों में नही पड़ना चाहते ।
हम आपको यह बताना चाहते है कि यह देश ही नही दुनिया का सबसे बड़ा स्टेडियम है साथ ही यहाँ 1,32,000 लोगों के बैठने की क्षमता है. 2020 में तैयार हुए इस स्टेडियम को बनाने में करीब 800 करोड़ रुपये (यानी 110 मिलियन अमेरिकी डॉलर ) का खर्च आया। अहमदाबाद का यह स्टेडियम 63 एकड़ में फैला हुआ है और इस स्टेडियम में 76 कॉरपोरेट बॉक्स, चार ड्रेसिंग रूम के अलावा तीन प्रैक्टिस ग्राउंड भी हैं. एक साथ चार ड्रेसिंग रूम वाला यह दुनिया का पहला स्टेडियम है. इसके साथ ही वहाँ बनने वाला यह एक क्रिकेट स्टेडियम ही नही है यहाँ पूरा स्पोर्ट्स कॉम्प्लेक्स है जिसका नाम सरदार पटेल स्पोर्ट्स कॉम्प्लेक्स है इसे ओलम्पिक की दृष्टि से सभी खेलो के आयोजन की क्षमता के लिये तैयार करने की योजना है आज तक हमारे देश मे ओलम्पिक के लायक कोई भी स्टेडियम नही था जहाँ सभी प्रकार की सुविधाएं हो। सरकार द्वारा कहा जा रहा है कि यहाँ इस तरह की सुविधा कर दी है कि 6 महीने में ओलंपिक, एशियाड और कॉमनवेल्थ जैसे खेलों का आयोजन कर सकता है. और अहमदाबाद को अब स्पोर्ट्स सिटी के रूप में जाना जाएगा।
इन सब सुविधाओं से पूर्ण किसी परिसर को बनाना तो बड़ा कार्य है ही मगर उससे बड़ा कार्य है उसका रख रखाव जिसका ध्यान रखना बहुत जरूरी है साथ ही जरूरी है इसका सही सदुपयोग ताकि इसका लाभ देश को मिल सके और देश मे विभन्न खेलो को बढ़ाने सहायता मिले कही ऐसा न हो के ये देश के चुनावी कार्येक्रम का ही हिस्सा बन कर राह जाये। इसकी असली सार्थकता तभी है जब ये देश मे खेलो के विकास में अपनी भूमिका निभाये।
और जहाँ तक बात है नाम की तो स्वयं के नाम पर किसी भी योजना या धरोहर को बनाना सही परंपरा नही है और इसका दोषी कोई एक नही है क्योंकि सभी ने अपने नामो पर जाने क्या क्या किया है खुद को पुरस्कार देना या खुद के नाम पर चौक बनना , योजनाये बनाना इसकी तो एक परम्परा सी बन गयी है लगता है सब परंपरा को ही निभा रहे है।
और किसी ने कहा है नाम मे क्या रखा है मगर राजनीति में तो नाम मे सब है क्योंकि कुछ लोगो की तो राजनीति ही उनके नाम पर ही टिकी है ।
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