कोशिश .....An Effort by Ankush Chauhan
भारत मे 22 मार्च 2020 को प्रधानमंत्री जी के आह्वान पर जब पहली बार जनता कर्फ्यू के नाम से लॉक डाउन लगा तो शायद किसी को अहसास भी नही होगा के इसके बाद देश और दुनिया की तस्वीर बदल जाएगी। इसके बाद फिर 21 दिन का लॉक डाउन प्रवासी मजदूरों का पलायन और देश मे बढ़ते कोरोना के मामले , रोज लोग टीवी के सामने बढ़ते आकड़ो के देखते तो कभी भूख से मरते लोगो की खबरे मगर इन सबके बीच सरकार और आम जनता द्वारा की जा रही सेवा की खबरे कुछ राहत देती । इसी तरह 2020 निकल गया और लोगो ने 2021 का स्वागत ऐसे किया मानो अब सबकुछ बदले वाला है मगर ऐसा हुआ नही स्तिथि 2020 से से ज्यादा खराब हो गयी । चीन के वुहान शहर से फैला एक वायरस पूरी दुनिया को इस तरह अपनी चपेट के ले लेगा किसी ने शायद कभी सोचा भी न हो।
मगर ये वायरस हमे बहुत कुछ सीखा गया जीवन की बहुत सी सच्चाई से रूबरू करा गया आगे भी जाने और क्या क्या सीख सकता है । इस वायरस ने हमे बताया कि इंसान की सारी तरक्की और विकास कुदरत के सामने बोन है दुनिया के सभी शक्तिशाली और समृद्ध देश लाचार से दिखाई दिये शायद ही कोई देश हो जो इससे प्रभावित ना हुआ हो। जहाँ एक और देश दुनिया मे आवाजाही ठप हो गयी साथ ही लोग गारो में बंद होने को मजबूर हो गए । काम धंदे , व्यपार , रोजगार सब ठप से हो गया मगर वही दूसरी और लोग सेवा के लिये भी आगे आये कुछ लोगो ने निस्वार्थ सेवा की भूखों तक भोजन पहुँचाया लोगो तक मदद पहुचायी तो कही लोग ने इस आपदा में भी सेवा के नाम पर प्रचार कर अपनी राजनीति और नाम को चमकाने के कार्य किया मगर यही समाज है जहाँ अच्छे और बुरे सभी तरह के लोग है और कही लोगो ने ऑक्सीजन और दवाओं की काला बजारी की तो कही कुछ लोग अपब सबकुछ भूल कर भी सेवा के लिए आगे आये। कही लोग अपनो से ही दूर हो गये, कही लोगो ने गैरो को भी अपना बना लिया। वक़्त इस भी आया के इंसान इंसान को देखकर डरने लगा और कही रोजी रोटी के लिए हर डर से लड़ने लगा। कुछ लोगो ने अपने लालच के लिए भी जोखिम उठाये । तो कुछ लोग बस लाचार हर परिस्थिति को देखते रहे।
फेफड़ो की इस बीमारी का सबसे ज्यादा असर रिश्तों पर दिखा लोगो पर डर इस कदर हावी दिखा के बीमार व्यक्ति को देखकर लोग उसका हाल पूछने के बाजए दूरी बनाने लगे , सावधानी ही इस बीमारी को बढ़ने से रोक सकती थी मगर वो सावधानी कब दूरियों में बदल गयी पता ही नही चला सामाजिक दूरी के नाम पर समाज मे इंसानों के बीच दूरी ही बाद गयी।
इंसान को भी अपनी असली जरूरतों का असहास होने लगा क्या जरूरी क्या गैर जरूरी फर्क पता लगने लगा शहरों की ओर आकर्षित लोग भी गाँव की और रुख करने लगे । जिनके पास गांव में ठिकाना नहीं था वो भी एक वहाँ एक आश्यने कि तलाश करने लगे।
जिन बच्चो का दिन गलियों में गुजरता था वो भी घर की दीवारों में कैद हो गये वो मासूम तो ये भी नही जानते थे कि आखिर ये हो क्या रहा है कभी स्कूल न जाने के बहाने ढूढ़ने वाले बच्चे आज स्कूल की एक झलक को भी तरसने लगे। खेल कूद यारो दोस्तो का साथ सब अचानक से छूट गया। अब तो वो भी बस मोबाइल में ही खोने लगे। न जाने क्या होगा इन बच्चो का भविष्य।
समाज मे चाहे कितनी भी विसंगति हो फिर भी शायद ही कोई तबका और वर्ग हो समज का जो इससे प्रभावित ना हुआ हो। मगर इतना सब कुछ होने के बाद भी क्या हम कुछ समझ पाए क्या हम कुछ सिख पाये?
क्यो दौड़ता था तू , ना जाना ये कभी ।
आज थम सा गया है , फिर भी ना माना अभी।
जरूरत है क्या जिंदगी की, ना जाना ये कभी।
सिमट सी गयी है जिंदगी, फिर भी ना माना अभी।।
निकला था घर से कमाने को, खुशियां जहां भर की।
आज हर खुशी को बचाती है, ये दीवारे ही घर की।
जिस रौनक को देखकर , पाली थी ख्वाहिश नगर की।
उन्ही गलियों को देखकर आज, याद आती है गॉव के घर की।
कही ना कही अहसास तो ये , सभी के दिलो में है।
जरूरत जीवन की इतनी नही , जितनी हमने बनाई थी।।
जब नही था ये सब, तब बैठ के खाने को साथ वो एक चटाई थी।
याद है वो पहली कहानी, जो दादी माँ ने छोटी सी खटिया पे सुनाई थी।
तलाश में जाने किसकी, अब तक ये दौड़ लगाई थी।
पहुँच कर हर मंज़िल पर, एक नई मंज़िल ही पायी थी।।
-AC
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें