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भारतीय दर्शन और आधुनिक विज्ञान

कोशिश .....An Effort by Ankush Chauhan भारतीय दर्शन विश्व के प्राचीनतम दर्शनो में से एक है इसमें अनेक वैज्ञानिक सिंद्धान्तो को प्रतिपादि...

पुण्य कर्म

कोशिश .....An Effort by Ankush Chauhan


गोपाल अपनी पत्नी सरला के साथ एक छोटे से गॉव में रहकर अपनी 7  बीघा  जमीन में खेती बड़ी कर जैसे तैसे अपना जीवन यापन कर रहा था , इस खेती में साल भर के खाने के लिए अनाज निकाल कर थोड़ा बहुत वो मंडी में बेच देता है जिससे साल भर के गुजारे के लिए कुछ पैसे आ जाते , मगर आज कल मंडियों में भी बिचोलियो का इतना बोल बाला हो गया के उन्हें कुछ दिए बिना एक छोटे किसान  के लिए अपना अनाज बेच पाना मुश्किल हो जाता है गोपाल भी कई दिनों से मंडियों के चक्कर काट कर खली हाथ घर आ रहा था। 
आज भी  गोपाल जैसे ही घर के आंगन में पैर रखता है उसकी पत्नी सरला उत्सुकता से पूछती है - " जी आज कुछ बात बनी  क्या ?"

गोपाल भी हाँ  में सिर हिलाते हुए पैसे सरला के हाथ में रखते हुए बोलता है - "बस दाम थोड़े कम मिले है, मगर ईश्वर की कृपा से गुजरा हो जायेगा। "

"आप पहले बच्चो की वर्दी का नाप दे आओ और नया बस्ता दिला लाओ स्कूल में मास्टर रोज टोकता  है इन्हे " - सरला ने कहा 

गोपाल भी लोटे के पानी से मुँह धोते हुए - " ठीक है आज शाम को दिला लाऊगा , तू भी अपने लिए एक साड़ी लेती आना तेरी बहन के यहाँ भी तो लड़के  की शादी  है ,वहाँ ऐसे जाएगी क्या "

" अरे नहीं मै तो शीला बहन जी की साड़ी मांग लुँगी एक दिन की ही तो बात है , आप अपना कुर्ता  सिलवा  लेना फटा पड़ा है सारा , आपको तो बारात में जाना है वो पहन के जाओगे क्या " - सरला ने कहा
 
" चल देखते है , तू पहले रोटी लगा दे बहुत जोरो की भूख लगी है "- और गोपाल हाथ पैर  धोकर खाने के लिए बैठा जाता है
 
सरला , गोपाल को रोटी देती है और गोपाल रोटी खाकर थोड़ा आराम करने के लिए चारपाई पर बैठता ही है के तभी फूलसिंह , जो खेतो में मजदूरी का काम करता है आ जाता  है वो गोपाल के यहाँ भी कभी कभी फसल के समय मजदूरी किया करता  था।  गोपाल स्वभाव का बहुत अच्छा इंसान था ,वो सबके साथ अच्छा व्यवहार करता , न तो जात पात  का भेदभाव करता ना  बड़े छोटे का , और अपनी सामर्थ्य के अनुसार सबकी सहयता भी कर दिया करता , सबसे अच्छी बात उसकी ये थी की जब वो किसी की सहयता करता , ना  तो कभी किसी को एहसान दिखता और ना  ही कभी उसका ढिंढोरा पीटता , वो हमेशा यही कहता की अगर हम किसी के जरूरत के समय काम आ पाए तो ये ईश्वर की हम पर कृपा है , उसके इसी सरल स्वभाव के कारण लोग अक्सर बिना संकोच के उसके पास आ जाया  करते।  

राम राम प्रधान जी  ( गॉव में जिसके पास जमीन  हो उसे उसके यहाँ मजदूरी करने वाले लोग अक्सर इसी तरह सम्बोधित करते थे ) - फूल सिंह ने घर में  घुसते  हुए कहा 

गोपाल  भी बड़ी विनम्रता और सम्मान के साथ जवाब देता - "राम राम फुल्लू भाई आ जा बैठ जा , कैसे आना हुआ। "

" बस प्रधान  जी क्या बताऊ छोटी सी मदद चाहिए आपका एहसान होगा बहुत " - फूल सिंह  ने कहा 

गोपाल ने भी प्रेम पूर्वक कहाँ  - इसमें एहसान की क्या बात है, बता क्या बात हुई, जो बन पड़ेगा करेंगे "

फूलसिंह  बोला - "कल लड़की के रिश्ते वाले आ रहे है , कही कुछ इंतजाम  नहीं हुआ बस आपसे ही उम्मीद है नहीं तो कल लड़के वालो के सामने बात बिगड़ जाएगी "

गोपाल ने सरला की और देखा और धीरे से कहा-  "जा दो -तीन सौ रुपये ला दे इनका काम हो जायेगा "

सरला अंदर से तो गुस्सा होती है पर फूल सिंह के सामने बिल्कुल जाहिर नहीं करती और चुपचाप तीन सौ  रूपये ला कर गोपाल के हाथ  में रख देती ही  गोपाल वो फूल सिंह को देते हुए - " ले भाई , संभाल के रखना , और मेहमानो के लिए  एक दो मिठाई भी ले आना "

फूल सिंह पैसे जेब में रखता है और खुश होकर हाथ जोड़ते हुए - " प्रधान जी जैसे ही कही काम लगता है पहले आपके पैसे लौटाऊंगा आपने मेरी नाक कटने से बचा ली "

"कोई बात नही  भाई इंसान ही इंसान के काम आता है" - गोपाल ने कहा 

फूल सिंह अपने घर की और चल जाता है और गोपाल जैसे ही चारपाई पर पैर फ़ैलाने की कोशिश करता है सरला बहार आती है वो अभी तक तो फूल सिंह की वजह से चुप थी  मगर अब थोड़ा नारजगी के  के भाव से बोलती  है - " सारी  दुनिया का ठेका आपने ही लिया हुआ है"

गोपाल शांत भाव से  - " किसी गरीब का काम हो गया बस और क्या बेचारा बड़ी उम्मीद से आया था।  ईश्वर ने उसी के नाम के दिए होंगे "

"अब बारात में जाना वो ही फटा कुर्ता पहन के,  क्या सोचगे वहाँ  लोग कैसे घर में बिहाई है सरला भी "- सरला ने गुस्से में कहा 

गोपाल ने समझते हुए - " अरे तू तो यु ही परेशान होती है ,जैकेट तो सही है वहाँ कोई मेरी जैकेट उतार कर देखेगा क्या  की कुर्ता फटा है या सही। "

सरला मुँह बनाकर - " आपका तो बस यही है , जैसे कोई और भी आपके बारे में सोचने आ रहा है। "

और सरला बड़ बड़ करते हुए अंदर कमरे में चली जाती है और गोपाल भी चारपाई पर लेट जाता है।  उनका तो ये रोज काम है , सरला हमेशा  गोपाल को समझती के लोगो की मदद से पहले अपना और अपने बच्चो का भी कुछ सोच लिया करो और गोपाल था की कभी अपने बारे में सोचता ही नहीं उसके सामने अगर कोई मदद के लिए आ जाये तो वो हर सम्भव प्रयास करता उसकी मदद का , वो तो यहाँ तक करता की एक बार गोपाल खाना थाली में लेकर बैठा ही था   और घर के दरवाजे पर एक साधु  मांगने आगया तो उसने उस भूखे साधु को अपनी थाली ही पकड़ा दी। दोनों की शादी को 15 साल हो गए थे और उनका जीवन बस ऐसे ही नौक झोक में चल रहा था बच्चे अभी छोटे थे पास के स्कूल में जाते थे बेटी 12 साल की सातवीं कक्षा में पढ़ती और बेटा  9 साल का था और अभी चौथी  में था। जिंदगी की गाड़ी बस धीरे धीरे खिसक रही थी।  परिवार में सबके जीवन में अपार  संतोष के कारण तकलीफ जायदा नहीं होती थी। गोपाल सुबह ही खेत में जाता और अपनी गाय  के लिए घास लाता और सरला उसका घर के काम में हाथ बटाती , खेत का काम गोपाल करता और घर पर गाय  का घास , पानी , दूध का काम दोनों मिलकर करते सब ठीक ही चल रहा था के अचानक खेत में काम करके जब गोपाल घर लौटा तो अचानक उसकी तबीयत बिगड़ गयी सरला दौड़ कर एक रिक्शा वाले को बुला कर लायी और उसे सरकारी अस्पताल ले गयी। डॉक्टर ने उसकी जांच करी और उसे अस्पताल में ही भर्ती कर लिया रात में सरला को भी उसके पास ही रुकना पड़ा। आने से पहले सरला बेटी को समझा कर आयी थी के घर पर भाई का भी ध्यान रखना और आने में देरी हो जाये तो रसोई घर में रोटी रक्खी है दोनों खा लेना।  मगर उसे कहा पता था के रात रुकना पड़ेगा। सरला रात भर परेशान थी साथ ही उसे ये भी चिंता थी के उनकी अनुपस्थति में गाय का घास पानी कौन करेगा और दूध कौन निकलेगा।  साथ ही रात भर बच्चे अकेले कैसे रहेंगे। रात बहार सरला के दिमाग में यही घूमता रहा।  सुबह जब गोपाल को थोड़ा आराम हुआ तो डॉक्टर ने घर जाने की इज्जाजत तो दी मगर दो चार दिन घर पर आराम करने की सलाह भी दी। रिक्शा कर के जैसे ही घर पहुंची तो उसने देखा के पड़ोस की एक बूढी अम्मा बच्चो के पास बैठी थी और बच्चो को नाश्ता करा रही थी। 

अम्मा को वह बच्चों के साथ देखकर संतोष के भाव के साथ सरला ने कहा - " ताई आप कब आयी यहाँ "

बूढी अम्मा ने कहाँ - "बेटा  में तो कल शाम से यही हु , जब तुजे गोपाल के साथ रिक्शा में जाते देखा तो मुझे कुछ गड़बड़ लगी तो मैं  दौड़कर घर आयी तो बच्चो ने बताया के गोपाल को तू अस्पताल ले कर गयी है , तो मैंने सोचा बच्चे अकेले है तो मै यही रुक गयी  , गोपाल कैसा है अब "

सरला ने चैन की साँस ली और कहा - " ये तो अब ठीक है बस डॉक्टर ने 2 -4 दिन  आराम करने को बोलै है "

" ताई आपका बड़ा अहसान रहेगा हम पर आपने  बच्चो का ध्यान रक्खा मुझे तो रात भर चिंता रही " -सरला ने कृतज्ञता के भाव से कहा 

" अरे बेटा इसमें एहसान कैसा, इंसान ही तो इंसान के काम आता है, जब तेरे ताऊ बीमार हुए तो गोपाल ही तो उन्हें डॉक्टर के ले गया था और दो दिन वही रहा था अस्पताल में  वर्ना  मैं  बुढ़िया कहा जाती " - बूढ़ी अम्मा ने जवाब दिया 

सरला बच्चो की चिंता से मुक्त होकर , बैठती ही है के तभी पड़ोस की विमला चाची हाथ में दूध के बाल्टी लेकर अन्दर आती है और बोलती है - आ गयी सरला , गोपाल ठीक है अब "

सरला हां में गर्दन हिला देती है 

विमला दूध की बाल्टी रखते हुए बोलती है - "ले तेरी गाय का दूध निकाल  दिया और घास पानी सब हो गया , शाम को एक बार फिर चक्कर लगा दूगी और हाँ  शाम का दूध तेरी रसोई घर में रखा है एक बार फिर उबाल लेना जो बचा होगा "

" चाची आपकी बहुत मेहरबानी ,आप ना आते तो गाय रात भर ऐसे ही खड़ी  रहती " - सरला ने कहा 

"अरी सरला कैसी बात करती है तू भी , इंसान ही तो इंसान के काम आवे है, एहसान तो गोपाल का है हम पर जब मेरी बड़ी बेटी कुसुम की शादी  हुई तो बारात दरवाजे पर आने को थी और खाने का कोई इंतजाम ना था तब गोपाल ने ही चावल का कट्टा लाकर दिया अपने घर से तब जाकर बारात के लिए दाल भात का इंतजाम हुआ था "- बिमला चाची  ने कहा 

बिमला चाची की बात सुनकर सरला गोपाल के मुँह की तरफ देख उनके नेक कर्मो को सोच  ही रही थी के तभी फूलसिंह आवाज़ लगता है - " प्रधान जी प्रधान जी क्या  हो गया "

गोपाल धीमी आवाज में -"बस कुछ नहीं फुल्लू भाई कल जरा से चक्कर  आ गए थे "

"क्या कहा डॉक्टर ने " - फूलसिंह ने पूछा 

" 2 -4  दिन आराम करने के लिए बोला है डॉक्टर ने इन्हे " - सरला ने जवाब दिया 

" ध्यान रखना प्रधान जी ,और किसी काम धाम की चिंता मत करना घास मैं रोज ला दुगा खेत से और गाय  को भी डाल जाया करूंगा "

सरला की तो जैसे सारी  चिंता ही दूर हो गयी थोड़ी  देर बैठ कर सभी अपने अपने घर चले गए मगर सरला चुप चाप बैठी गोपाल की और देख रही थी, गोपाल धीरे से पूछता है - " अब तू क्या सोच रही है किस चिंता में डूबी है "

"अब काहे की चिंता सारा काम तो तो आपने पहले ही निपटा दिया , आप सच ही कहते थे इंसान ही इंसान के काम आता है , आपके पुण्य कर्मो ने ही आज मुसीबत के समय हमारी सारी  चिंता दूर कर दी " - सरला आँखों से ख़ुशी के आंसू पोछते हुए।  दोनों बच्चे अपनी माँ के गले लगकर बैठ जाते है , और सभी मन ही मन ईश्वर का धन्यवाद करते है और चैन की साँस लेकर सरला भी पीछे कमर की टेक लगाकर आराम करने लगती है। 

-AC

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