घोर अंधेरा छाया मन पर , प्रभु इसे हटाओ।
माया जाल है कैसा फैला , प्रभु इसे मिटाओ।।
भोग विलासिता में फस कर, जीवन अधोगति में जाता।
पशुवत जीवन जी रहे है , नही मुक्ति मार्ग सुझाता ।।
घोर अंधेरा छाया मन पर , प्रभु इसे हटाओ।
माया जाल है कैसा फैला , प्रभु इसे मिटाओ।।
दर्शन के अभिलाषी नयना, कभी तो रूप दिखलाओ।
कण कण में है वास् तुम्हारा ,कभी तो सम्मुख आओ।।
घोर अंधेरा छाया मन पर , प्रभु इसे हटाओ।
माया जाल है कैसा फैला , प्रभु इसे मिटाओ।।
हे सर्वज्ञ, मैं अल्पज्ञ , मुझे ज्ञान मार्ग दिखलाओ।
जिस मार्ग पर भेंट हो तुमसे मार्ग वो बतलाओ।।
घोर अंधेरा छाया मन पर , प्रभु इसे हटाओ।
माया जाल है कैसा फैला , प्रभु इसे मिटाओ।।
-AC
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