प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने लाल किले की प्राचीर से अगले 25 साल में भारत को विकसित देश बनाने का महासंकल्प दिलाया है. उन्होंने कहा कि जब आजादी के 100 साल पूरे होंगे, तब देश विकसित देश बनना चाहिए. आखिर विकसित राष्ट्र का अर्थ क्या है क्या सिर्फ आर्थिक विकास करने मात्र से हम विकसित हो जायेगे? विकास का अर्थ है आर्थिक , वैचारिक , सांस्कृतिक विकास । अपनी संस्कृति की रक्षा करते हुए सैद्धांतिक वैचारिक मूल्यों के साथ आर्थिक स्थिति को सुदृढ़ बनाना ही सच्चा विकास है । जब तक हम उस विकास को प्राप्त न कर ले चाहे कितना भी आर्थिक सुदृढ हो जाये विकसित राष्ट्र नही हो सकते भले ही वर्ल्ड बैंक के आंकड़े हमे विकसित राष्ट्र कहने लगे। इसमें सबसे पहले आता है वैचारिक मूल्य , जब तक हमारे विचार मूल्यवान नही होंगे हमारी सोच मूल्यवान नही होगी तब तक हमारे कर्म भी मूल्यवान नही होगे समाज मे फैला चोरी, रिश्वत, भ्रष्टाचार , हेरा फेरी, अनैतिक तरीको से धन कमाना, सरकारी सम्पतियों की लूट, जमीनों /सड़को पर अवैध कब्जे, अपने घरों के रैंप सड़क पर ले आना, समाज सेवा का धन्धा बना देना, राजनीति को कमाई जा जरिया समझना, अपने दायित्वों का ईमानदारी से निर्वाह न करना ये सभी वैचारिक पतन के ही कारण है चोरी, रिश्वत भ्रष्टाचार, हेरा फेरी करने वाले के साथ हम भी दोषी है क्योकि इन अनैतिक तरीको से धनार्जन करने वाले इन लोगो का हम तिरस्कार नही करते बल्कि हम लोग उन्हें समाज का सम्मानित व्यक्ति बना देते है , हम या हमारा अपना कोई किसी ऐसी नौकरी में जाता है जिसमे तनख्वाह कम है तो हम उसमे संतोष और संयम नही सीखते बल्कि उसमे ऊपर की कमाई देखते है यही वैचारिक पतन है, सरकारी जमीनों, सड़को पर कब्जे को तो आज हम अपना अधिकार समझते है घरों के रैम्प तो सड़को पर आते ही है अब तो घर भी 2 -4 फिट सड़को पर दिख जायेगे, इसमें न तो बनाने वाले को शर्म आती है ना ही देखने वालों को आज समाज की नज़र में इनका विरोध करने वाला मूर्ख है यही वैचारिक पतन है, राजीनीति आज सेवा का नही रोजगार का माध्यम बन गया है लोगो का वैचारिक पतन इस हद्द तक हो गया है के लोगो का राजनीति में घुसने का उद्देश्य कमाई के साधन और सरकारी सम्पति/ संसाधनों पर कब्जे के मार्ग ढूंढना है , कोई सरकारी सेवा हो या कोई निजी सेवा अपने दायित्वों का सही से निर्वहन ना करना वैचारिक पतन ही है। इसलिये जब तक वैचारिक विकास ना हो आर्थिक विकास हो भी जाये तो उसका लाभ आम जनमानस तक नही पहुँच सकता । दूसरा सांस्कृतिक विकास, इसका आधार वैचारिक विकास ही है क्योंकि हमारी संस्कृति वैचारिक मूल्यों पर ही आधारित है जिसमे मैं नही हम की भावना सर्वोपरि रही है हमारी संस्कृति सर्वेभवन्तु सुखिनः की रही है जब सब सुखी होंगे तो तो मेरा भी सुखी होना स्वाभाविक है परंतु मेरा सुख सभी के साथ मूल्यवान है, हमारी संस्कृति में एक समय राम एक वचन के लिए सारी सत्ताओ को छोड़कर वन चले जाते है और आज लोग छोटे से प्रधान - दिवान बनने के बाद ही जनता को दिये अपने वचनों को भूल जाते है बडी सत्ताओ का तो कहना ही, क्या ये वैचारिक और सांस्कृतिक मूल्यों का पतन नही है। आज भाई भाई में सम्पति के विवाद सामान्य बात है और कभी भरत जैसे लोग सारी सम्पति प्राप्त होने पर भी सम्पति नही, अपने भाई का साथ चाहते है और उनकी खड़ाऊ को उनका प्रतीक मान कर उस राज्य सम्पति के सेवक बनकर भाई का इंतजार करते है । हमारे देश के सांस्कृतिक मूल्य बहुत मजबूत थे इसमें परिवार का महत्व था आज एकल परिवार का महत्व बढ़ गया व्यापार, व्यवसाय , रोजगार के लिए परिवार से अलग रहना अलग बात है परंतु स्वतन्त्र जीवन के नाम पर परिवार से अलग हो जाना वैचारिक और सांस्कृतिक मूल्यों का पतन है। ऐसी बहुत सी घटनाएं है समाज की जहाँ हम वैचारिक और सामाजिक पतन को देखते है इसलिये सही मायनों में सबसे पहले वैचारिक और सांस्कतिक विकास जरूरी है क्योंकि यही विकसित समाज और राष्ट्र की नींव है आज भी हमारे देश मे संसाधनों की इतना अधिक कमी नही , कमी है तो सही विचारों की, दूषित विचारों के कारण उन संसाधनों का सही लाभ आम जनमानस तक नही पहुँच पता । ये कार्ये सिर्फ सरकारों का नही है ये वैचारिक और सांस्कृतिक क्रांति जनमानस द्वारा ही लायी जा सकती है क्योंकि लोगो से ही समाज और राष्ट्र का निर्माण होता है, जब हम अपने निजी स्वार्थों से ऊपर राष्ट्र को रखना सिख जाये तो समझो परिवर्तन शुरू हो गया एक ऐसा परिवर्तन जो आपके और हमारे बच्चो के लिए सही अर्थों में विकसित राष्ट्र का निर्माण करेगा । यदि आज हम अपने विचारों को सही दिशा देगे तो वो ही उज्ज्वल भविष्य का निर्माण करेगा।
-AC
जीवन को सार्थक बनाने के लिए ईश्वर से प्रार्थना सच्चे मन से वह शक्ति हमे दो दयानिधे
वह शक्ति हमें दो दयानिधे,
कर्तव्य मार्ग पर डट जावें।
पर सेवा पर उपकार में हम,
जग जीवन सफल बना जावें।
हम दीन दुखी निबलों विकलों
के सेवक बन संताप हरे।
जो हैं अटके भूले भटके,
उनको तारें खुद तर जावें।
छल दम्भ द्वेष पाखण्ड झूठ-
अन्याय से निशि दिन दूर रहे।
जीवन हो शुद्ध सरल अपना,
सुचि प्रेम सुधारस बरसावें।
निज आन मान मर्यादा का,
प्रभु ध्यान रहे अभिमान रहे।
जिस देश जाति में जन्म लिया,
बलिदान उसी पर हो जावें।।
मन मे संकल्प के साथ स्वयं को राष्ट्र को समर्पित करने के भाव से
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