मैं बैठा गंगा के तट पर
सोच रहा जीवन है क्या।
कल कल करता बहता ये जल
कहता बस एक ही बात।
जो कल था वो आज नही
जो आज यहाँ वो कल खो जाता।
पर ये गंगा का तट वहीँ
रहती गंगा की धार वही।।
क्या खोया क्या पाया जग में
सब कुछ यही धरा रह जाता।
गौमुख से चलकर, गंगासागर में मिल जाना
फिर मेघो के पंखों पर चढ़कर ,नया जन्म है पाना।
चक्र यही है जीवन का भी
जो बस यूं ही चलते है जाना ।
मैं बैठा गंगा के तट पर
सोच रहा जीवन है क्या।
झूठ सच की गठरी बाँधी।
सोने चांदी के ढेर लगाए।।
मैं मै कर माया जोड़ी ।
साथ न जाये फूटी कौड़ी।।
घोड़ा गाड़ी महल दुमहले ।
सब पीछे रह जाता है
भाई बंधु रिश्ते नाते
साथ कोई ना जाता है।
क्या खोया क्या पाया जग में
सब कुछ यही धरा रह जाता है।
मैं बैठा गंगा के तट पर
सोच रहा जीवन है क्या।
-AC
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