व्यंग्यात्मक कविता "कौन बनेगा प्रधान"
कौन बनेगा प्रधान
अटकी सबकी जान
सारे पासे फेक दिये, पर
वोटर, नही रहा है मान।
अटकी सबकी जान , भईया
अटकी सबकी जान
कौन बनेगा प्रधान
घर - बार कही दाव पर है,
कही दाव पर शान
जीवन भर जो रहे लुटते,
आज मांग रहे, वोट का दान।
अटकी सबकी जान, भईया
अटकी सबकी जान,
कौन बनेगा प्रधान
बैनर- पोस्टर लगवा दिये है,
आध्धे- पव्वे बटवा दिए है,
पर जनता के मन मे है क्या,
नही पा रहे जान , ओ भईया
कौन बनेगा प्रधान
गुना भाग सब लगा लिये है,
रिश्ते नाते सब जोड़ लिए है
लिया जीत का थान,
फिर भी गले मे अटकी जान।
कौन बनेगा प्रधान, भईया
कौन बनेगा प्रधान
सबके दावे अपने -अपने
नही रहा कोई, किसी की मान
खाने वाले, सबका खाते
पी के सबकी नारे लगाते,
बैठ पास गाते है, गुनगान।
अटकी सबकी जान , भईया
कौन बनेगा प्रधान
जन सेवा का धंदा बनाके,
चुनाव से पहले खूब लुटाते,
हाथ पैर सब जुड़ जाते।
जीत चुनाव फिर लूट के खाते,
काम ना ये कुछ सही करवाते।
बस इसीलिए, भटके प्राण।
अटकी इनकी जान , के भईया
कौन बनेगा प्रधान
कौन बनेगा प्रधान।
-AC
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